muskan1
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भारत को वैश्विक विनिर्माण हब बनाने के लिए 2014 में ‘Make in India’ पहल शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य आयात में कमी, निर्यात में बढ़ोतरी, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वृद्धि, GDP में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी 25% तक ले जाना और बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन करना था। लेकिन 2024 तक ये लक्ष्य पूरे नहीं हो सके।

बढ़ता व्यापार घाटा: 2014 में 61 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा था, जो 2023 में बढ़कर 73 बिलियन डॉलर हो गया।
FDI का असंतुलन: 2024 में FDI इनफ्लो 71 बिलियन डॉलर था, लेकिन 44.4 बिलियन डॉलर का विनिवेश भी हुआ, जिससे शुद्ध घाटा बढ़ा।
विनिर्माण क्षेत्र में ठहराव: GDP में विनिर्माण की हिस्सेदारी 25% तक बढ़ाने का लक्ष्य था, लेकिन यह 15% पर अटक गई।
रोजगार सृजन में असफलता: 10 करोड़ नौकरियां सृजित करने का लक्ष्य था, लेकिन सिर्फ 2 करोड़ रोजगार उत्पन्न हुए।
ब्यूरोक्रेसी और सुस्त नीतियां: भारत में एक फैक्ट्री स्थापित करने में महीनों लग जाते हैं, जबकि वियतनाम में यह 20 दिनों में संभव है।
कमज़ोर लॉजिस्टिक्स: भारत में माल बंदरगाहों तक पहुंचने में 7-10 दिन लगते हैं, जबकि चीन और वियतनाम में यह सिर्फ 1 दिन में हो जाता है।
कुशल श्रमिकों की कमी: भारत में मात्र 4.7% कार्यबल प्रशिक्षित है, जबकि जर्मनी में 75% और दक्षिण कोरिया में 96%।
व्यवसाय स्थापित करने की प्रक्रिया को सरल बनाया जाए।
लॉजिस्टिक्स और बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ाया जाए।
व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी जाए।

‘Make in India’ की असफलता के कारण







‘Make in India’ को सफल कैसे बनाया जाए?


